श्रीनिवास संस्कृत विद्यापीठम्: गुरुकुल परम्परा में शिक्षा का केंद्र

वैकुण्ठवासी स्वामी श्री गोविन्दाचार्य जी के द्वारा शिक्षा, सेवा एवं साधना का लक्ष्य लेकर सन् 1999 में अपने जीवन में 1000 से अधिक प्रकांड विद्वान तैयार करने का संकल्प लेकर सर्वप्रथम श्री मुक्तिनाथपीठ विद्याश्रम की स्थापना की l शिक्षा के प्रकल्पों का संवर्धन करते हुए आपने चंडीगढ़, पंचकुला, मैसूर, पनवेल ( नवी मुंबई) , भिवानी, जयपुर आदि विभिन्न राज्यों में 9 से अधिक वैदिक गुरुकुलों की स्थापना की l इस क्रम में आपके द्वारा अंतिम स्थापना दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र के इब्राहिमपुर गाँव में वसंत पंचमी,सन् 2006 को श्रीनिवास संस्कृत विद्यापीठम् (संस्कृत वैदिक गुरुकुल ) की स्थापना की

यह संस्था सोसाइटी एक्ट 1860 के अंतर्गत पंजीकृत है,  जिसे 12A, 80-G एवं CSR की मान्यता प्राप्त है। इस संस्था के माध्यम से पाठशाला की सम्पूर्ण व्यवस्था, भोजन, आवास, मानदेय, ग्रंथ प्रकाशन, संस्कृत-पत्रिका प्रकाशन, संस्कृत भाषा प्रशिक्षण शिविर, योग प्रशिक्षण शिविर आदि संस्कृत एवं संस्कृति  से जुड़े सभी सेवा प्रकल्प यथासम्भव संपादित किए जाते है ।

यह वैदिक गुरुकुल शिक्षा मंत्रालय(भारत सरकार) का प्रकल्प महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन के द्वारा सम्बद्ध एवं अनुदानित है l इस गुरुकुल में शुक्ल यजुर्वेद माध्यन्दिन शाखा, ऋग्वेद शाकल शाखा एवं सामवेद कौथुम शाखा इत्यादि तीन वेद , वेदांग, वेदान्त, दर्शन, न्याय-वैशेषिक शास्त्र पाणिनीय व्याकरण, योग, शास्त्रीय संगीत के साथ साथ साहित्य, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, कम्प्यूटर आदि आधुनिक विषयों का निःशुल्क अध्ययन-अध्यापन किया जाता है l

गुरु जी के दृढ लक्ष्य एवं आश्रमस्थ सभी छात्रें तथा अध्यापकों के परिश्रम के फलस्वरूप यह विद्यापीठ दूर-दूर क्षेत्रों व देशों में विद्वत्समाज एवं जनसमाज का प्रशस्तपात्र रहा है।                                                              

1. जून 1999 से लेकर वर्तमान तक इन दोनों के स्वामी श्रीगोविन्दाचार्यजी एवं स्वामी श्री जनार्दनाचार्य के मार्गदर्शन, संस्थापकत्व एवं संचालकत्व में संचालित विभिन्न शिक्षण संस्थाओं की प्रगति यह है कि 1200 छात्रों ने शिक्षित होकर उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर हुए है l जिनमे से 12 छात्रों ने विद्यावारिधि (PhD) की उपाधि प्राप्त कर चुके हैं। लगभग 50 छात्र शोध में पंजीकृत हैं। 100 से अधिक छात्र (B.Ed) (शिक्षाशास्त्री) कर चुके हैं और कई छात्र अभी प्रशिक्षणरत हैं। इसी तरह 200 से ज्यादा छात्रों ने आचार्य (M.A) की उपाधि प्राप्त कर ली है और अभी 300 से अधिक छात्र BA-MA (शास्त्री – आचार्य ) कक्षाओं में अध्ययनरत हैं। मुख्यशाखा दिल्ली की है और इसमें सबसे अधिक लगभग 70 छात्र होते हैं।

2. यहाँ के विद्यार्थियों ने राज्यीय, राष्ट्रिय, अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित शलाका परीक्षा, भाषण प्रतियोगिता, श्लोकान्त्याक्षरी प्रतियोगिता, सूत्रान्त्याक्षरी प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगिता, एकल श्लोकसंगीत प्रतियोगिता, नुक्कड़ नाटक आदि विभिन्न कार्यक्रमों में भाग ग्रहण कर प्रथम, द्वितीय आदि स्थानों को प्राप्त कर गुरुकुल को गौरवान्वित किया है।

3. यहाँ से पढे हुये छात्रों ने विभिन्न विश्वविद्यालयों (सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय)में जाकर बी-ए तथा एम-ए इत्यादि कक्षाओं में अनेक स्वर्णपदक प्राप्त किये हैं।

4. यहाँ से शिक्षा प्राप्त किये हुये अनेक छात्र भारत तथा नेपाल, अमेरिका इत्यादि देशों में विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रोफ़ेसर, लेक्चरर इत्यादि पदों पर रहकर संस्कृत एवं संस्कृति प्रचार प्रसार में संलग्न है l

5. अभी तक 50 से छात्र अधिक शिक्षा पूर्ण करके सर्वकारीय विद्यालय, इंटर कॉलेज़ एवं वैदिक गुरुकुलों में TGT-PGT स्तर पर सेवा दे रहे हैं l इसके अतिरिक्त 22 छात्र विभिन्न महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में लेक्चरार, रीडर एवं प्रोफ़ेसर इत्यादि शैक्षणिक पदों को सुशोभित करके संस्कृत सपर्या में संलग्न हैं l6. कई भूतपूर्व छात्र देश के विभिन्न राज्यों में मठ, मंदिर, आश्रम, वैदिक गुरुकुलों का संचालन करते हुए धर्म-अध्यात्म एवं संस्कृत-संस्कृति का संरक्षण – संवर्धन कर रहे हैं

एक बच्चे की शिक्षा, भोजन, वस्त्र आदि में  मासिक तीन हजार एक सौ रूपये
(3100) का खर्च आता है। अतः सभी लक्ष्मीकृपासम्पन्न  श्रद्धालु महानुभावों  से
निवेदन है कि एक या एक से अधिक बच्चों  का खर्च वहन करके भारतीय संस्कृति
एवं हमारे ट्टषि महर्षि द्वारा प्रदत्त ज्ञान परम्परा के आधार भूत शस्त्रों  की रक्षा कर
धार्मिक एवं सामाजिक कार्य के सहयोगी बन अक्षय पुण्य के भागी बनें ।