पूज्य श्री गोविन्दाचार्य जी का सम्पूर्ण जीवन संस्कृत एवं संस्कृति को समर्पित रहा। आपके जीवन का उद्देश्य था- शिक्षा, सेवा तथा साधना। तदनुसार शिक्षा के अन्तर्गत वेद, वेदांग, वेदान्त, दर्शन आदि के साथ विशिष्टाद्वैतसिद्धान्त सहित प्राच्यविद्याओें के एक हजार से अधिक प्रकाण्ड विद्वान् बनाने का लक्ष्य लेकर श्रीनिवास सेवार्थ न्यास एवं श्रीनिवास संस्कृत विद्यापीठम् के माध्यम से दिल्ली, चण्डीगढ, जयपुर आदि 10 स्थलों में शैक्षणिक संस्थाएँ (गुरुकुल) संस्थापित की, जहाँ 300 से ज्यादा छात्रें को अध्ययन, आवास, भोजन, उपचार आदि व्यवस्था निःशुल्क दे रहे हैं ताकि भारतीय संस्कृति एवं संस्कृत के सुयोग्य पुरोधा तैयार होकर देश व समाज को ट्टषिमुनियों के संस्कार प्रदान कर सकें। न केवल आध्यात्मिक शिक्षा अपितु अंग्रेजी, कम्प्यूटर तथा संगीत आदि लौकिक शिक्षा का भी अध्ययन-अध्यापन होता है। इसी प्रकार सेवा के अन्तर्गत- कामधेनु वंश की गौमाता की रक्षा हेतु श्रीनिवास गौशाला भी संचालित है, जिसमें अनेक गोवंश का भरण-पोषण हो रहा है। तथा एक निःशुल्क धर्मार्थ आयुर्वेदिक औषधालय का संचालन हो रहा हैं। तत्पश्चात् साधना के अन्तर्गत- आपने श्रीनिवास संस्कृत विद्यापीठम् ही श्री वेघड्ढटेश मन्दिर का निर्माण करवाया, जहाँ भगवान् श्रीनिवास वेघड्ढटेश (तिरुपति बाला जी) की प्राणप्रतिष्ठा के बाद भगवान् की नित्य आराधना चल चल रही है।
स्वामी श्री गोविन्दाचार्य जी ने अनेक आश्रमों तथा गुरुकुलों का संचालन एवं सामाजिक कार्यों के अलावा अपना अनमोल समय ग्रन्थ निर्माण, कला एवं संगीत, प्रवचन, व्याख्यान पर भी दिया। उसके अन्तर्गत छात्रेपयोगी अनेक ग्रन्थों का लेखन, सम्पादन तथा अनुवाद किया है तथा आपके द्वारा लिखित कई ग्रन्थ अनेक संस्कृत विश्वविद्यालयों के पाठड्ढक्रम में भी निर्धारित हैं।
आप संस्कृत जगत् में ख्यातिप्राप्त संस्कृत व्याकरण, वेदान्त तथा धर्मशास्त्र के मूर्धन्य विद्वान रहे तथा अपने 36 वर्षों के अध्यापनकाल में अनेक छात्रें का भविष्य निर्माण किया। आपके द्वारा पढ़ाए गए कुछ छात्र आज जगद्गुरु पद पर अधिष्ठित हैं तो कई छात्र महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय में व्याख्याता आदि पदों पर हैं। कई छात्र विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोधकार्यरत हैं। आपके द्वारा लिखित व व्याख्यात 20 से अधिक पुस्तकों के लगभग 22,000 पृष्ठ प्रकाशित हो चुके हैं तथा इसके अतिरिक्त 21,000 से अधिकपृष्ठ तथा ग्रन्थों का कार्य कम्प्यूटर में हो चुका है तथा प्रकाशन के अधीन हैं।
आपको आचार्य शंकर पुरस्कार, संस्कृत सेवा सम्मान, पाणिनि सम्मान, जन सेवक सम्मान, ट्टषि सम्मान, गोपालोपायनम्-पुरस्कार इत्यादि पुरस्कार एवं सम्मान सरकार तथा विभिन्न संस्थाओं द्वारा प्राप्त हैं। आपने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किया है। लक्ष्यचिन्तन, योगालोक, वंशी, संस्कृत संवाद तथा संस्कृतवाणी पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन व सम्पादन कार्य 1998 से निरन्तर करते आ रहे हैं।
यद्यपि प्रमाणपत्र आदि अभिलेखों में आपका नाम गोविन्द प्रसाद शर्मा है तथापि श्रीगोविन्दाचार्य नाम से आपकी प्रसिद्धि रही।ऐसे संस्कृत एवं संस्कृति के परमसेवक तथा परमभागवत श्रीगोविन्दाचार्य जी ने 30 नवम्बर 2020 को इहलोक त्यागकर श्रीवैकुण्ठ में भगवान् के परमसायुज्य को प्राप्त किया–
सायुज्यं समवाप्य नन्दति चिरं तेनैव धन्यः पुमान्। आपके शिक्षा एवं दीक्षा के आचार्य (गुरु)- उभयवेदान्ताचार्य अनन्तश्रीविभूषित श्रीनिवास मुक्तिनारायण रामानुज जीयर (श्रीधराचार्य) स्वामीजी महाराज (षडाचार्य, त्रिदण्डी स्वामीजी)
आपकी माता जी- श्रीमती भूदेवी शर्मा जी
आपके पिता जी- श्रीमान् भीमप्रसाद शर्मा (भागवताचार्य)।
उच्चशिक्षा आचार्य (व्याकरण व वेदान्त विषय में) सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी व भारतीयविद्याभवन, नई दिल्ली।
शिक्षण अनुभव , आप 20 वर्ष की अवस्था से वेद, वेदान्त, वेदांग का अध्यापन कर रहे हैं। 27 वर्ष की उम्र्र में अयोध्या में श्रीनिवास-बोधायन-रामानुज-संस्कृत-महाविद्यालय में व्याकरण-विभागाध्यक्ष (भ्व्क्ए टलांंतंद) के पद पर सीधे आपकी विश्वविद्यालय से नियुक्ति हुई।
अयोध्या में अपने लक्ष्य प्रति सीमित क्षेत्र होने के कारण छह साल के बाद आप अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर दिल्ली पधारे। प्रभु-कृपा तथा आचार्य-प्रेरणास्वरूप अपने सुयोग्य गुरुभ्राता के साथ मिलकर श्रीमती लक्ष्मीदेवी कनोडियाजी, हास्यकवि श्रीसुरेन्द्रशर्मा जी एवं श्री अशोककनोडिया जी आदि महानुभावों के सहयोग से दिल्ली के कुदसियाघाट के अन्तर्गत मारवाड़ीघाट पर श्रीमुक्तिनाथपीठवेदविद्याश्रम की स्थापना करके वर्ष 1999 से वेद, वेदांग, वेदान्त का पठन-पाठन शुरू किया। तत्पश्चात् अनेक गुरुकुल बनाये गये, जो आज एक बहुत बड़ा वटवृक्ष तैयार हो गया है।